________________
भारतीय संपादन- शास्त्र
( लेखक - मूलराज जैन, एम० ए०, एल एल० बी०, मेयो - पटियाला रिसर्च स्कालर, पंजाब यूनिवर्सिटी ) पहिला अध्याय भूमिका
संपादन - शास्त्र वह शास्त्र हैं जिसके द्वारा किसी प्राचीन रचना की उपलब्ध हस्तलिखित प्रतिलिपियों आदि के आधार पर हम उस रचना को इस प्रकार संशोधन कर सकें कि जहां तक संभव हो स्वयं रचयिता की मौलिक रचना या उसकी प्राचीन से प्राचीन अवस्था का ज्ञान हो सके। इसमें प्रतियों का परम्पर संबंध क्या है, उनका मूलस्रोत कौनसा है, उन में क्रमश: कौन कौनसे परिवर्तन हुए और क्यों हुए, उन से प्राचीनतम पाठ कैसे निश्चित किया जाए, उन की अशुद्धियों का सुधार कैसे करना चाहिए, यदि बातों पर विवेचन किया जाता है । संक्षेपतः इस शास्त्र की सहायता से किसी रचना को उपलब्ध प्रतियों आदि के मिलान से जहां तक हो सके उस के मौलिक अथवा प्राचीनतम रूप का निश्चय किया जा सकता है । मौलिक रूप से हमारा तात्पर्य किसी रचना के उस रूप से है जो उसके रचयिता को अभीष्ट था ।
इस शास्त्र का संबंध प्राय: प्राचीन रचनाओं से है । 'रचना' की और भी अनेक संज्ञाएं हैं जैसे पुस्त, पुस्तक, पोथी, सूत्र, ग्रंथ, कृति आदि । 'पुस्त' और 'पुस्तक'' संस्कृत धातु 'पुस्त' ( बांधना ) से निकले हैं। चूंकि प्राचीन काल में जिन पत्रादि पर रचना लिखा जाती थी उन को धागे से बांधते थे, इसलिए रचना को 'पुस्त' या 'पुस्तक' कहते थे । 'पुस्तक' शब्द से ही प्राकृत तथा आधुनिक भारतीय 'आर्य भाषाओं का पोथी' शब्द निकला है । 'सूत्र' उस सूत्र या डोरी की स्मृति दिलाता है जिस से पत्रादि बांधे जाते थे । 'ग्रंथ' ' प्रथ्' (बांधना, गांठ देना) धातु से निकला है और पत्रादि को बांधने के लिए सूत्र में दी हुई गांठ का सूचक है । यह रचनाएं प्रायः वनस्पति से प्राप्त सामग्री (ताडपत्र, भोजपत्र, कागज़, लकड़ी, वस्त्रादि २) पर लिखी जाती थीं अतः इन के विभागों को स्कंध, कांड, शाखा, वल्ली आदि नाम
१. संभव है कि 'पुस्त', 'पुस्तक' शब्द फ़ारसी से लिए गए हों क्योंकि उस भाषा में 'पुश्न', 'पोस्त' ( = सं० पृष्ठ ) का अर्थ 'पीठ, चर्म होता है, और फ़ारस के लोग धर्म पर लिखते थे ।
२. लेख धातु, चर्म, पाषाण, ईंट, मिट्टी की मुद्रा आदि पर भी मिलते हैं ।
Aho! Shrutgyanam