Book Title: Bharatiya Sampadan Shastra
Author(s): Mulraj Jain
Publisher: Jain Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ योगिनीतंत्र' के अनुसार बांस की कलमें और कांसी की सिलाइयो अच्छी नहीं होती; परन्तु नल ( अर्थात काने ) की लेखनी तथा सोने, तांबे और रेत्य की सिलाइयां अच्छी होती हैं। रेखा-पाटी—काग़ज़ पर सीधी लकीरों के निशान डालने के लिये यह लकड़ी या गत्ते की पाटी होती है जिस पर यथेष्ट अन्तर पर धागे कसे या चिपकाए होते हैं। परिशिष्ट ३ सूची-साहित्य जब से पाश्चात्य लोग भारत में आए तभी से वह भारतीय साहित्य को एकत्रित करने और उसके अध्ययन में लग गए। चेम्बर्ज, मैकॅन्ज़ी आदि कई विद्वानों ने व्यक्तिगत पुस्तक-संग्रह बनाए जिन में से कई में तो संस्कृत हस्तलिखित पुस्तकों की संख्या सहस्रों तक बहुंच गई थी । भारत और विदेश में इस संगृहीत साहित्य का सूची-निर्माण होने लगा । इस प्रकार साहित्य के इस अंग की नींव पड़ी। इस समय की छपी हुई कुछ सूचियां निम्नलिखित हैं - ___सन् १८०७ --सर विलियम और लेडी जोन्ज़ द्वारा रायल सोसायटी को भेंट किए गए संस्कृत तथा अन्य प्राच्य हस्तलेखों की सूची ( सर विलियम जोन्ज के वर्क्स भाग १३, पृ० ४०१-१५, लंदन, १८०७ ) । सन् १८२८-डिस्क्रिप्टिव कैटॅलाग आफ दि ओरियंटल मैनुस्क्रिपटस कोलेक्टिड बाइ दि लेट लैटिनेंट कर्नल कोलिन मैकॅन्ज़ी, कलकत्ता । १. भाग ३, पटल ७; शब्दकल्पद्रम में लेखनी' के विवरण में उद्धृत "वंशसूच्या लिखेद्वर्ण तस्य हानिर्भवेद् ध्रुवम् । ताम्रसूच्या तु विभवो भवेन तत्क्षयो भवेत् ।। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं सुवर्णस्य शलाकया । बृहन्नलस्य सूच्या वै मतिवृद्धिः प्रजायते ॥ तथा अग्निमयैर्देवि पुत्रपौत्रधनागमः ।" अग्निमयश्चित्रकाष्ठमयैः। "रेत्येन विपुला लक्ष्मी: कांस्येन मरणं भवेत् ।।" Aho I Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85