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( ७० ) भांडारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टिच्यूट पूना के सूचीपत्र, भाग १, १६१६; २, १६३८; १२, १६३६; १३, १६४०; १४, १६३७, १६, १६३६; १५, १६३५, १६३६, १६४०।
"एशियाटिकसोसायटी आफ बंगाल का विवरणात्मक सूचीपत्र भाग १, १६१७; २ और ४, १६२३; ३ और ५, १६२५, ६, १६३१; ७. १६३४; और ८, १६३६ ।
मिथिला के हस्तलेखों की विवरणात्मक सूची पटना, १६२७ और १६३२ ।
रायल एशियाटिक सोसायटी की बम्बई शाखा की सूची, भाग १-४, १६२५-३०।
सरस्वती महल लाइब्रेरी, तंजोर, के संस्कृत हस्तलेखों की सूची, १६ भाग । पंजाब युनिवर्सिटी लाइब्रेरी की सूची लाहौर, २६३१, १९४२ । पंजाब जैन भंडारों की सूची, लाहौर १६३६ ।
बडोदा से बड़ोदा सेंट्रल लाइब्रेरी, जेसलमेर और पाटण के जैन भंडारों के हस्तलेखों की सूचियां प्रकाशित हुई, १६२५, १६२३, १६३७ ।
इन के अतिरिक्त विदेश से भी बहुत सी सूचियां प्रकाशित हुई हैं-जैसे इंग्लैंड में आक्सफ़ोर्ड, केम्ब्रिज, लंडन से सूचियां निकली हैं। १६३५ में कीथ और टौमस ने इण्डिया आफिस लाइब्रेरी के संस्कृत और प्राकृत हस्तलेखों की सूची बनाई जो बृहत्काय और विवरणात्मक है । इसी प्रकार जर्मनी, फ्रांस, रूस, अमरीका आदि देशों से भी सूचियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
___ सन् १९६१ तक जितनी सूचियां छपी थीं उनके आधार पर औष्ट ने एक बृहत सूची तय्यार की जिस का नाम कैटॅलोगस “कैटॅलोगरम' है । इसमें ग्रंथों के नाम अकारादिक्रम से दिए हैं। ग्रंथ नाम के साथ जिन सूचियों में वह ग्रंथ वनित हो उनका उल्लेख भी कर दिया है। १८६६ और १६०३ में इस ग्रंथ के दो परिशिष्ट भी निकले जिन में इस कालांतर में उपलब्ध और ज्ञात ग्रंथों का समावेश किया गया। इन परिशिष्टों के साथ ग्रंथकारों की सूचियां भी हैं। मूल कैटॅलोगस कैटेलोगरम को प्रकाशित हुए ५० से अधिक वर्ष हो चुके हैं और इस के दो भाग परिशिष्ट रूप से निकल चुके हैं । इस अन्तर में बहुत सा साहित्य उपलब्ध हो चुका है और बहुत सी सूचियां भी बन चुकी हैं । अतः पिछले दिनों मद्रास विश्वविद्यालय ने एक नब कैटॅलोगस कैटॅलोगरम के निर्माण की आयोजना की है जिसका नमूना १६३७ में छपा था।
प्रांतीय जागृति के साथ साथ प्रांतीय साहित्यों की खोज प्रारम्भ हुई और उन की सूचियां प्रकाशित हुई । यहां पर हिंदी साहित्य की खोज की रिपोर्टों का उल्लेख करना अनुचित न होगा । १६०० से लेकर १६०६ तक तो वार्षिक रिपोर्ट,
और १९०६ के पश्चात् त्रैवार्षिक रिपोर्ट निकलीं । इन का निर्माण श्यामसुन्दर दास, मिश्रबन्धु, हीरालाल आदि महानुभावों द्वारा हुआ था। यह लेख ओरियनएटल कालेज मेगजीन नवम्बर १९४२ की क्रम संख्या
७१ में छप चुका है।
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