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( ४२ ) (घ) छंदोभंग को दूर करना।
उदाहरण - महाभारत उद्योग० (२०, २० ) “विनतां विषण्णवदनां'-पाठांतर 'विषण्णरूपां विनता', 'विनतां दीनवदना', विषण्णवदनां कद्रूः ; (६२, ४) 'करवाणि किं ते कल्याणि'--'किं ते करोमि कल्याणि', 'किं ते कल्याणि करवै', 'करवाणि किमद्याह'।
महाभारत उद्योग० (७, १३ ) द० मया तु दृष्टः प्रथमं कुन्तीपुत्रो धनंजयः
उ० 'दृष्टस्तु प्रथमं राजन्मया पार्थो धनंजयः' उ०' अभिवादयन्ति वृद्धांश्च ;द० 'अभिवादयते वृद्धान्' ; द० 'दयितोऽसि राजन्कृष्णस्य --उ० प्रियोऽसि......।
(१५). प्रक्षेप
किसी रचना में जान बूझ कर पाठ पढ़ाने को प्रक्षेप कहते हैं। शब्द, वाक्य और श्लोक के प्रक्षेप से लेकर बड़े अवतरणों और सर्गों तक का प्रक्षेप दृष्टिगोचर होता है । इसका कारण प्रायः करके शोधक या पाठक होता है।
(क) किसी वस्तु की संख्या सूची में आधिक्य । उदाहरण-निरुक्त ( २, ६) B धारा में 'वृक्षो व्रश्चनात् । नियतामीमयत् ...
'है। A धारा में 'वृक्षो व्रश्चनात् । वृत्वा क्षां तिष्ठतीतिवा। क्षा क्षियतेनिवासकर्मणः । नियतामीमयत् ... ... ...' है।
(२, १३) B धारा में 'सूर्यमादितेयमेवम' है। A धारा में 'सूर्य मादितेयमदितेः पुत्रमेवम्' है।
महाभारत आदि० अध्याय ६४ में दक्षिणधारा में विद्याओं की सूची लम्बी कर दी है - ७५८६ 'शब्दच्छन्दोनिरुक्तज्ञैः कालज्ञानविशारदैः ।
द्रव्यकर्मगुणज्ञैश्च कार्यकारणवेदिभिः ।। जल्पवादवितण्डहासप्रन्थसमाश्रितैः ।
नानाशास्त्रेषु मुख्यैश्च शुश्राव स्वनमीरितम् ।।' ( ख ) किसी विशेष दृश्य आदि के प्रस्तुत वर्णन को विस्तृन करना।
उदाहरण-पृथ्वीराजरासो की कई प्रतियों में युद्ध, विवाह आदि का वर्णन अन्य कई प्रतियों की अपेक्षा अधिक विस्तृत है।
महाभारत आदि०, परिशिष्ट १, ७८ में युद्ध-वर्णन को विस्तृत किया है-३० में २ पंक्तियां, द० में ११६ पंक्तियां हैं।
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