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ड और (ल) के पाठ को अपपाठ, अशुद्ध या अनिष्ट पाठ कहते हैं । यह ग्राह्य नहीं।
___ इस विधि से दो प्रकार का लाभ है । पहला तो यह कि कुछ पाठांतर छोड़े जा सकते हैं, और दूसरा यह कि काल्पनिक मूलदर्श (श) के कुछ ऐसे पाठों का अनुमान किया जा सकता है जो सब प्रतियों का साधारण पाठ न हों।
काल्पनिक आदर्श और मूलादर्श का पुनर्निर्माण भिन्न भिन्न काल्पनिक आदर्शों और मूलादर्श के पुननिर्माण की विधि निम्नलिखित है । प्रतियों के संकेत सब ऊपर वाले चित्र ही के अनुसार हैं।
(१) (व ) का पुनर्निर्माण इस प्रकार हो सकता हैग घ के सम पाठ (व) के पाठ हैं।
यदि ग और घ में पाठ-भेद है और इन में एक पाठ (य) गण की शेष प्रतियों से मिलता है, तो वह ( व ) का पाठ है । क्योंकि कई भिन्न परम्परा वाली प्रतियों के सम पाठों का आधार मूल पाठ (श ) हो सकता है, इसलिए ग घ की व्यक्तिगत अशुद्धियां ( व ) के पुनर्निर्माण में सहायक नहीं हो सकतीं।
इसी प्रकार यदि ग घ में पाठ-भेद है और इन में से कोई एक पाठ (र) गण या उस की किसी प्रति से मिलता है, तो वही (व) का पाठ है।
यदि ग घ के पाठ न परस्पर मिलते हों और न ही अन्य किसी प्रति से, तो हम नहीं कह सकते कि कौनसा पाठ (व) का है, अत: इस का पाठ संदिग्ध रह जाता है ।
(२)(ल) का पुनर्निर्माण भी ऊपर वाली विधि से क, ङ (व) और ( र) के मिलान से होगा। इस में उसी प्रकार निश्चय या सन्देह विद्यमान रहेंगे।
(३) (य) का पुनर्निर्माण उपर्युक्त नियमों के अनुसार ङ, (ल) (व) (र) के आधार पर होगा।
(४) (र) का पुनर्निर्माण इस प्रकार होगाच छ ज के सम पाठ (र) के पाठ हैं।
यदि इन प्रतियों में पाठ-भेद हो और इन में से कोई एक पाठ (य) गण या उस के उपगणों या उस की किसी प्रति के पाठ से मिलता हो, तो यह समान पाठ ही (र) का पाठ होगा। इस पाठ-समता का समाधान इन धाराओं के संकर और. आकस्मिक सरूपता के अतिरिक्त इसी बात से हो सकता है कि सम पाठ ही (र) का पाठ था और यही ( श) का पाठ भी था।
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