Book Title: Bharatiya Sampadan Shastra
Author(s): Mulraj Jain
Publisher: Jain Vidya Bhavan

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Page 76
________________ ( ६३ ) 'स्ट्रेबो' ने लिखा है कि आगस्टस सीज़र ( मृत्यु विक्रम सं० ७१ ) को भारत से चर्म पर एक लेख आया था । स्टाइन को मध्य एशिया से चर्म पर खरोष्ठी लिपि के लेख मिले थे और ब्यूलर को जैस मेर के 'बृहत् ज्ञानकोश' नामक जैन भण्डार में हस्तलेखों के साथ अलिखित चर्मपत्र भी मिला था । (७) पाषाण - प्राचीन काल से भारत में कई प्रकार का पाषाण लिखने के काम आता था । इस पर अनेक राजकीय शासन और कुछ ग्रंथ मिले हैं। बीजोल्या ( राजपूताना ) से शिलाओं पर उत्कीर्ण 'उन्नतशिखर पुराण' और अजमेर से विप्रहराज चतुर्थ और उसके राज कवि सोमेश्वर द्वारा रचित दो नाटकों ( हरकेलिनाटक और ललितविग्रहराजनाटक ) के अंश मिले हैं। (८) ईटों पर खुदे हुए बौद्ध सूत्र उत्तर-पश्चिम प्रांत में मिले हैं। कच्ची ईंटों पर अक्षर उत्कीर्ण करके उन को पकाया जाता था । महिंजोदड़ो, हड़प्पा, नालंदा, पाटलिपुत्र आदि स्थानों से मिट्टी की मुद्दाए और पात्र मिले हैं जिन पर लेख खुदे हैं । (६) काग़ज़ ( कार्पासपत्र ) — कहते हैं कि पहिले पहिल चीन वालों ने सं० १६२ में काराज़ बनाया । परंतु विचर्कस' अपने व्यक्तिगत अनुभव से लिखता है कि "हिंदुस्तान के लोग रूई को कूट कर लिखने के लिए काग़ज़ बनाते हैं ।" टब्यूलर आदि कई पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि योरप की नाईं भारत में भी काग़ज़ का प्रचार मुसलमानों ने किया था । परंतु इन के आने से पूर्व के भारतीय साहित्य में कुछ उल्लेख ऐसे मिलते हैं जिन के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत १. मॅर्किडल -- एन्शंट इंडिया ऐज़ डिस्क्राइब्ड बाइ स्ट्रेबो, पृ० ७१ । २. भारतीय प्राचीन लिपिमाला पृ० १५० का टिप्पण नं० ६ । ३. भारत पर आक्रमण करने वाले यवन बादशाह सिकंदर का निर्कस एक सेनापति था । वह उन के साथ पंजाब में रहा और वापसी पर भी वही सेनापति था । उस ने आक्रमण का विस्तृत वृत्तांत लिखा था जिस का सार एरिअन ने अपनी इंडिका नामक पुस्तक में दिया है । ४. इस विषय में मैक्समूलर लिखता है कि 'निर्कस कहता है - भारतवासी रूई से काग़ज़ बनाना जानते थे' ( देखो - हिस्टरी ऑफ एन्शंट संस्कृत लिट्रेचर पृ० ३६७), और ब्यूलर का प्राशय हैं "अच्छी तरह कूट कर तय्यार किये हुए रूई के कपड़ों के "पट" (इंडियन पेलियोमाफ़ी पृ० ६८ ) जो भ्रमपूर्ण है क्योंकि पट अब तक बनते हैं और वह सर्वथा कूट कर नहीं बनाए आते। निर्कस का अभिप्राय कागज़ों से ही है | ( भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ० १४४ का टिपण ३ ) | Aho! Shrutgyanam

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