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होगा। संयुक्तागमसूत्र' चौथी शताब्दी का है। तत्पश्चात् गॉडफ्रे संग्रह की अपूर्ण प्रतियां और बौवर (छटी श०) और बखशाली ( आठवीं श०) प्रतियां हैं। इन के अनन्तर काश्मीर हस्तलेख हैं जो अब संसार के प्रसिद्ध पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं। यह प्राय: पंद्रहवीं शताब्दी से पूर्व के नहीं मिलते ।
(३) कपड़ा-इस को संस्कृत भाषा में पट, पटिका, या कार्पासिक पट कहते हैं । लेखन-सामग्री के रूप में इस का उल्लेख स्मृतियों' और सातवाहन के समकालीन कई शिलालेखों में मिलता है। दक्षिण में लिखने के लिए इस का प्रयोग अब भी होता है।
कपड़े का प्रयोग जैनों में बहुलता से मिलता है। ब्यूलर को जैसलमेर में चीनांशु पर जैन आगमों की सूचो मिली थी। और पीटरसन ने लिखा है कि पाटण के एक जैन भंडार में श्री प्रभसूरिविरचित 'धर्मविधि' नामक पुस्तक, उदयसिंह की वृत्ति सहित, २५ इंच चौड़े कपड़े के २२ पत्रों पर सं० १४१८ का लिपिकृत विद्यमान है। बड़ोदा के जैन भंडार में 'जयप्राभृत' कपड़े पर लिखा मिलता है। कपड़े पर विज्ञप्तियां भी लिखी जाती थीं जिन को हमने बड़ोदा में डा० हीरानन्द जी शास्त्री के निजी संग्रह में देखा है।
__ ओरियंटल कालेज के भूतपूर्व प्रिन्सिपल सर ऑरल स्टाइन को मध्य एशिया से भी अनेक प्रकार के कपड़ों पर लेख मिले थे।
(४) लकड़ी का पाटा और पाटी–ललितविस्तर', जातक' आदि बौद्ध ग्रंथों में लकड़ी की पाटियों फलक) का उल्लेख है । शाक्यमुनि को अक्षरारंभ के समय चंदन की पाटी दी गई थी। विद्यार्थी अपने अपने फलक पाठशाला में ले जाते और वहां उन पर लिखते थे। ___ रंगीन फलकों पर लिपिकृत पुस्तकें ब्रह्मदेश में बहुत मिलती हैं और आसाम भी एक पुस्तक मिली है जो बोडलेअन पुस्तकालय में सुरक्षित है। १. दत्त्वा भूमि निबन्धं वा कृत्वा लेख्यन्तु कारयेत् ।
आगामिभद्रनृपतिः परिज्ञानाय पार्थिवः । पटे वा ताम्रपट्टे वा समुद्रोपरिचिह्नितम् ॥ (मिताक्षरा, अध्याय १, ३१६, ३१७) २. कात्रे, पृ०५। ३. ललितविस्तर अध्याय १० ( अंग्रेजी अनुवाद ) पृ० १८१-८५। ४. कटाहक जातक।
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