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(५) धातु-लिखने के लिए सोना, चांदी, कांसी, पीतल, तांबा, लोहा आदि अनेक धातुओं का प्रयोग होता था। सोने और चांदी का प्रयोग बहुत कम होता था परंतु तांबे का बहुत अधिक।
राजाओं तथा सामंतो की ओर से मंदिर, मठ, ब्राह्मण, साधु आदि को दान में दिए हुए गांव, खेत, कूप आदि की सनदें तांबे पर खुदवा कर दी जाती थीं । इन को दानपत्र, ताम्रपत्र, ताम्रशासन, या शासनपत्र कहते हैं । दानपत्रों को रचना दानी स्वयं करता या किसी विद्वान् से कराता था। फिर उस लेख्य को सुंदर अक्षर लिखने वाला लेखक स्याही से तांबे के पत्रों पर लिखता और सुनार, ठठेरा या लुहार उसे खोदता था।
___ इन पत्रों की लंबाई और चौड़ाई लेख्य, लेखनी आदि पर निर्भर होती थी। इन का आकार ताड़, भोज आदि आदर्श पत्रों के अनुसार होता था । लंबे ताम्रपत्र प्रायः दक्षिण में मिलते हैं क्योंकि वहां ताड़पत्रों का प्रयोग बहुत होता था। यदि एक ही दानपत्र दो या अधिक ताम्रपत्रों पर खुदा हो तो इन को तांबे के एक या दो छल्लों से जोड़ा जाता था। कभी कभी इस छल्ले की संधि पर राजमुद्रा भी लगाई जाती थी।
सुवर्णपत्रों का उल्लेख जातकों' में मिलता हैं-इन पर लोग अपने कुटुंब संबंधी विषयों, राजकीय शासनों और धर्म नियमों को खुदवाते थे । तक्षशिला के गंगू नामक स्तूप से खरोष्ठी लिपि के लेख वाला, और ब्रह्मदेश से अनेक सुवर्णपत्र प्राप्त हुए हैं।
रजतपत्र तक्षशिला और भट्टियोलू से मिले हैं । जैन मंदिरों में चांदी के गट्टे और यंत्र मिलते हैं जिन पर 'नमस्कार मंत्र' खुदा रहता है।
बुद्धकालीन ताम्रशासनों का ज्ञान फ़ाहियान के लेखों से होता है। तांबे और पीतल को जैन मूर्तियों पर भी लेख मिलते हैं ।
(६) चर्म-योरप और अरब आदि देशों में प्राचीनकाल में चमड़े पर लिखा जाता था । परंतु भारत के लोग इसे अपवित्र मानते हैं इसलिए इस का प्रयोग यहां शायद ही होता होगा। फिर भी चर्म पर लिखने के उदाहरण मिलते हैं। सुबंधु ने अपनी 'वासवदत्ता' में अंधेरे आकाश में चमकते हुए तारों को स्थायी से काले किए हुए चमड़े पर चंद्रमा रूपी खड़िया से बनाए हुए शून्यबिन्दुओं से उपमा दी है।
१. कएह, रुरु, कुरुधम्म और तेसकुन नाम के जातक ।
२. विश्वं गणयतो विधातुः शशिकठिनी अण्डेन तमोमषीश्यामेऽजिन इव नभसि संसारस्यातिशून्यत्वाच्छून्य बिन्दव इव-हाल संपादित वासवदत्ता, पृ० १८२।
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