Book Title: Bharatiya Sampadan Shastra
Author(s): Mulraj Jain
Publisher: Jain Vidya Bhavan

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Page 59
________________ ( ४६ ) 'प्रतियों की संख्या नहीं देखी जाती, उन की विश्वसनीयता की जांच की जाती है'यह संपादन का अन्य मूल सिद्धांत है । उदाहरण-मालतीमाधव के संस्करण में भांडारकर ने अंक ३ श्लोक ७ के पूर्वपाद का पाठ N प्रति के आधार पर 'स्खलयति वचनं ते स्रसयत्यंगमंगम' माना है। शेष आठ प्रतियों में समान पाठ था 'स्खल पति ववनं ते संश्रयत्यंगमंग' । इस का कारण है कि N प्रति का पाठ जगद्धर की टीका में भी मिलता है । अतः बहु संख्यक प्रतियों के पाठ को भी त्याज्य समझना पड़ा। ____ यदि इन दो ( या अनेक ) पाठों में से भाषा, लिपि आदि के कारण किसी एक पाठ का शेष पाठ विकृत रूप हो सकते हों तो यह पाठ मूल पाठ है। उदाहरण १-यदि "य" गण की प्रतियां उत्तर भारत की लिपियों में लिखित हों और "र" गण की दक्षिण भारत की लिपियों में हों, और यदि "य" गण में पाठ 'धिष्ठिता' हो और "र" गण में 'विष्ठिता', तो 'धिष्ठिता' मूल पाठ हो सकता है क्योंकि विष्ठिता' लिपि-भ्रम से 'धिष्ठिता' का विकृत रूप हो सकता है। उत्तर भारत की प्राचीन लिपियों में 'ध' और 'व' की आकृति समान होती थी । इस प्रसंग से एक और बात भी ज्ञात होती है कि 'र' गण का काल्पनिक आदर्श उत्तर भारत की लिपि में था या वह उत्तर भारत की लिपि के किसी आदर्श की प्रतिलिपि था । अतः रचना उत्तर से दक्षिण को गई थी। उदाहरण २–यदि सब प्रतियां शारदा लिपि के आदर्श के आधार पर देवनागरी लिपि में लिखी गई हों अर्धात् 'श' शारदा लिपि में हो, और यदि 'य' गण में उपा' और 'र' गण में 'तथा' पाठ हों, तो 'तथा' मूल पाठ होगा क्योंकि शारदा लिपि के 'त' और 'थ' देवनागरी लिपि के 'उ' और 'ष' से मिलती जुलती आकृति वाले होते हैं। (३) यदि 'य' गण की प्रतियों में पाठ-भेद हो, अर्थात् 'व' गण का पाठ ङ और 'ल' गण के सम पाठ से भिन्न हो, तो (य) गण में दो पाठ हो गए । इन में से कोई एक ( मान लो कि (व) गण का ) पाठ (र, गण की प्रतियों के पाठ से मिलना है तो (य) का पाठ (र) (व) के आधार पर निर्धारित किया जाएगा न कि ङ, (ल) के आधार पर । (व) और (र) की पाठ समानता का समाधान उन धाराओं के संकर और आकस्मिक सरूपता के अतिरिक्त इस बात से हो सकता है कि (व) में (य) और (र) का साधारण पाठ अर्थात् (श) का पाठ मिलता है । ऐसी अवस्था में Aho ! Shrutgyanam

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