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परिशिष्ट १
प्रतियों के मिलान की रीति
प्रतियों का मिलान बड़ी सावधानी और मेहनत का काम है । पहले उपलब्ध सामग्री में से सब से अधिक प्रामाणिक और शुद्ध प्रति का निर्धारण करना चाहिये । फिर श्लोकबद्ध ग्रन्थ के एक एक पाद, श्लोकार्थ या श्लोक को, और गद्य ग्रन्थ के एक एक छोटे अंश को जो कागज़ पर एक पंक्ति में आ सके, पृथक २ कागज़ की शीटों पर लिखना चाहिये । शीट के दोनों ओर हाशिया रहना चाहिये ! बायें हाशिये में मिलान वाली प्रतियों के नम्बर ABC आदि और दायें हाशिये में प्रक्षिप्त आदि पाठ या अन्य टिप्पनी लिखनी चाहिये । कागज़ों पर मुख्य प्रति का समय पाठ उतारा जायगा और मिलान वाली प्रतियों का केवल पाठांतर या भेद दिखाया जायगा ।
शीटों की संख्या संपाद्य ग्रन्थ के परिमाण पर, और शीटों की लंबाई मिलान वाली प्रतियों की संख्या पर निर्भर हैं । यदि शीटों पर चार- खाना लकीरें खिची हों तो मिलान में सुविधा और शुद्धता रहेगी क्योंकि इस तरह पाठांतर का प्रत्येक अक्षर अपने मूल अक्षर के नीचे २ आता जायगा । शेष बातों में संपादक को परिस्थिति के अनुसार अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिये ।
पूने से महाभारत का जो संस्करण निकल रहा है उसके तय्यार करने में समग्र पाठ के लिए कम से कम दस प्रतियां मिलाई गई हैं । बहुत से पर्वों के लिये बीस प्रतियों का, कुछ के लिये तीस और चालीस प्रतियों का, और आदि पर्व के पहले दो अध्यायों के लिये साठ प्रतियों का मिलान किया गया क्योंकि इसी के आधार पर महाभारत के संपादन - सिद्धान्त आश्रित हैं ।
मिलान करने के लिये एक प्रति का सारा पाठ एक एक श्लोक करके एक एक शीट पर उतारा गया। मिलान के पश्चात् दूसरे व्यक्तियों ने उन का पुनरीक्षण किया* ।
* महाभारत, आदि पर्व - अंग्रेज़ी उपोद्घात - पृष्ठ IV-V
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