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। ४८ ) यदि च छ ज के पाठ न परस्पर मिलते हों और न ही अन्य किसी प्रति के पाठ से, तो (र) का पाठ संदिग्ध रह जाएगा।
__ इस सब का सार यह है कि क ख ग घ ङ च छ ज प्रतियों में से किसी एक प्रति में उपलब्ध वह पाठ, जो दूसरी प्रतियों के पाठ से भिन्न हो, य) या (र) के पुननिर्माण में प्रायः सहायता नहीं कर सकता। इसलिए इस को अपपाठ मान कर, इस की उपेक्षा की जा सकती है।
यदि काल्पनिक मूलादर्श (श) से (य) और (र) के अतिरिक्त अन्य धाराएं भी निकलती हों, तो भी (य) (र) आदि का पुनर्निर्माण ऊपर बतलाई विधि से ही होगा।
(५) काल्पनिक मूलादर्श (श) का पुनर्निर्माण इस प्रकार होगा(य) (र) के पुनर्निर्मित समपाठ (श) के पाठ होंगे।
यदि इन में पाठ भेद हो, अर्थात् ( य ) का एक पाठ हो और (र) का दूसरा, तो इन में से कोई सा भी पाठ (श) का हो सकता है । यह पाठ संदिग्ध रहेगा। परंतु यदि वर्गों के आकार आदि के कारण एक पाठ दूसर पाठ का विकृत रूप हो सके, तो दूसरा पाठ ही मूल पाठ होगा।
यदि (य ) में भी पाठ-भेद हो और (र) में भी, तो इन में से किन्हीं दो या अधिक प्रतियों का सम पाठ (श) का पाठ हो सकता है । यदि किसी भी प्रति का पाठ दूसरी के पाठ से न मिले तो (श) का पाठ संदिग्ध होगा।
(६) यदि काल्पनिक मूलादर्श (श) से (य) (र) (ह) आदि अनेक धाराओं का गम हुआ हो, तो ( श) पाठ का पुनर्निर्माण इन में से किन्हीं दो या अधिक धाराओं के समपाठ से होगा । परन्तु जब इन धाराओं में भिन्न भिन्न पाठ हों, या जब किन्हीं दो या अधिक धाराओं की पाठ-समानता आकस्मिक हो, या परस्पर मिलान के कारण हो तो (श) का पाठ संदिग्ध होगा।
(७) संकीर्ण धाराओं के आधार पर (श ) का पुनर्निर्माण
पुनर्निर्माण के विषय में ऊपर जो लिखा गया है उस में भिन्न भिन्न धाराओं को शुद्ध माना गया है । परन्तु प्रायः देखने में आता है कि धाराएं शुद्ध नहीं होती, उन में अन्य धाराओं का संकर दृष्टिगोचर होता है । (श) की तीन धाराएं हैं(य) (र) और (ह) । यदि (य) (र', (र) (ह), और (ह) (य) का परस्पर संकर हुआ हो, तो (य) (र) (ह में से किसी एक धारा के पाठ को पाठांतर मानना पड़ेगा जो साधारण परिस्थिति में ग्राह्य नहीं होता। हम नहीं कह सकते कि इन भिन्न पाठों में कौन सा पाठ मौलिक है। अतः इन पाठों की महत्ता पुनर्निर्माण के लिए बराबर है।
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