Book Title: Bharatiya Sampadan Shastra
Author(s): Mulraj Jain
Publisher: Jain Vidya Bhavan

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Page 56
________________ (ग) आख्यान, युद्ध, विवाह आदि को कई बार वर्णन करना । उदाहरण-महाभारत आदि० द० में कृष्ण और धृष्टद्युम्न के जन्म का अद्भुत वृत्तांत अध्याय १५५ और परिशिष्ट १,७६ में दुहराया है। पृथ्वीराज रासो की कई प्रतियों में पृथ्वीराज के युद्धों, विवाहों, आखेटों आदि का वर्णन बार बार किया हैं, परंतु अन्य प्रतियों में यह वर्णन इतनी बार नहीं आते। (घ) उचित स्थान पर सदुक्ति का प्रयोग करना। महाभारत आदि० को दक्षिणी धारा में निम्नलिखित श्लोक हैं जो उत्तरी धारा में नहीं हैं५६५* अन्यथा सन्तमात्मानमन्यथा सत्सु भाषते । ___ स पापेनावृतो मूर्खस्तेन आत्मापहारकः । ६०५* पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने । पुत्रस्तु स्थविरे भावे न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति । ११८६* पुत्रं वा किल पौत्रं वा कासांचिद् भ्रातरं तथा । रहसीह नरं दृष्ट्वा योनिरुतिलद्यते ततः । आदि । (ङ) सैद्धांतिक अवतरणों का डालना । उदाहरण-रामानुज' आम्नाय में प्रचलित रामायण (R1) में ५, २७, २०-३२ मिलता है जो अन्यत्र नहीं मिलता। (च) आदर्श के त्रुटित अंशों को पूरा करने के निमित्त । उदाहरण-बुद्धचरित को प्राचीन प्रति त्रुटित थी । इस से प्रतिलिपि करते समय अमृतानंद ने त्रुटित अंशों को आप पूरा कर दिया । (घ) पूर्वापर विरोध को दूर करने के लिए। उदाहरण-महाभारत आदि० ( परिशिष्ट १,८०) = बम्बई संस्करण अ० १३६ में युधिष्ठिर को युवराजपद पर नियुक्ति और अर्जुन का अपने गुरु से युद्ध करने का प्रायश्चित्त प्रक्षेप हैं। (ज) नाटकों को रंगमंच पर खेलते समय नट नटी अपनी परिस्थिति के अनुकूल कुछ न कुछ परिवर्तन कर लेते थे। संभव है कि इसी कारण से कालिदास के शाकुंतल के कई पाठ भेद हो गए हों। १. कात्रे पृ० ६२। २. जानस्टन संपादित बुद्ध-चरित, भाग १, भूमिका पृ०८ । Aho I Shrutgyanam

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