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रावन बाम छुआ नहिं चापा । हारे सकल भूप करि दापा ।
१ । २५५ । ३ (२) ओर निबाहु भाप भाई । करि पितु मातु सुजन सेवकाई ।
२ । १५१ । ५
'ओर निबाहु' का अर्थ होता है अंत तक निबाहना । इस का पाठ लोगों ने और निबाहु' वा 'अर निबाहु' बदल दिया है । निम्नलिखित अवतरणों पर ध्यान न देने से यह भूल हुई है ।
सेवक हम स्वामी सिनाहू । होउ नात यह ओर निबाहू | २ | २३ | ६ प्रनतपाल पालहिं सत्र काहू । देव दुहू दिसि ओर निबाहू । २ । ३१३ | ४ ( पद-पद्म गरीब निवाज के । ) देखिौं जाइ पाइ लोचन फल हित सुर साधु समाज I गई हर ओर निराहक सानक बिगरे साज के ॥
गीतावली ( सुंदर कांड ) पद सं० २६ (मों पै तो न कद्दू है आई । )
ओर निवाहि भी बिवि भायप चल्यौ लषन सो भाई ।
गीतावली (लंका कांड) पद सं० ६
सरनागत आरत प्रनतनि को दै दै अभय पद ओर निबाहैं । करि आईं, करिहैं करती हैं तुलसीदास दासनि पर छा हैं |
गी० (उत्तर कांड) पद सं० १३
दुखित देखि संतन को सोचै जनि मन माहूँ । तोसे पसु पाँवर पातकी परिहरे न सरन गए रघुबर ओर निबाहू । विनयपत्रिका पद सं० २७५
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(५) सोइ सिसुपन सोइ सोभा सोइ कृपाल रघुबीर |
भुवन भुवन देखत फिरौं प्रेरित मोह समीर ॥ ७ । ८१
'समीर' पाठ लोगों ने बदल कर 'सरीर' कर दिया है। प्रेरणा करने का गुण समीर का है, यथा
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