Book Title: Bharatiya Sampadan Shastra
Author(s): Mulraj Jain
Publisher: Jain Vidya Bhavan

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Page 39
________________ ( २६ ) शुद्ध संबंध शुद्ध संबंध से हमारा अभिप्राय उस संबंध से है जो ऐसी दो प्रतियों में हो जो केवल एक ही आदर्श के आधार पर लिखित हों, या जब उन में एक आदर्श हो और दूसरी उस की प्रतिलिपि । इन प्रतियों के लिपि करने में आदर्श के अतिरिक्त अन्य किसी प्रति से सहायता नहीं ली होती। उदाहरण-किसी रचना की सात प्रतियां उपलब्ध है जिनके नाम क, ख, ग, घ, ङ, च, छ हैं । यदि इन में से क और शेष ६ प्रतियों में कोई विशेष समानता न हो तो क इन सब से भिन्न होगा । यदि इन ६ प्रतियों में से ख, ग, घ, ङ परस्पर बहुत मिलती हो परंतु क और च, छ से काफ़ी भिन्न हों, और इसी प्रकार यदि च, छ आपस में मिलती हों, तो हम कह सकते हैं कि क अकेली है, ख, ग, घ, ङ एक गण या वंश की हैं और च, छ दूसरे की । इन प्रतियों के निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि ख, ग, घ, ङ एक ही काल्पनिक आदर्श "य" के आधार पर लिखित हैं और च छ अन्य किसी काल्पनिक आदर्श "र" के। हम पहले बतला चुके हैं कि लिखते समय प्रति में अशुद्धियां आ जाती हैं, अतः प्रतिलिपि की शुद्धि आदर्श की शुद्धि से कम होती है। क्योंकि "य" ख, ग, घ, ङ का आदर्श है इसलिए 'य" के पाठ इन के पाठों की अपेक्षा अधिक शुद्ध, अधिक प्राचीन और अधिक प्रामाणिक होंगे। ख, ग,घ,ङ के मिलान से "य" के पाठों का पुनर्निर्माण हो सकता है। यदि "य" उपलब्ध होता तो हम देख सकते थे कि "य" के पाठ वास्तव में ख ग घ ङ में से किसी एक प्रति के पाठों से अधिक शुद्ध, प्राचीन और प्रामाणिक हैं। और हम ख ग घ ङ के लिपिकारों की कुछ अशुद्धियों का समाधान भी कर सकते थे । इसी प्रकार “र” के पाठ च, छ में से किसी एक प्रति के पाठों से अधिक शुद्ध, प्राचीन और प्रामाणिक होंगे । यदि ख ग,घ, ङ प्रतियों में ख, ग परस्पर बहुत मिलती हों और घुल-मर्यादा भी न छोड़ती हों तो ख, ग किसी काल्पनिक आदर्श "ल" की प्रतिलिपियां होंगी। अत: "ल" के पाठ ख, ग में से किसी एक के पाठों से अधिक शुद्ध, प्राचीन और प्रामाणिक होंगे। ___ यदि क और काल्पनिक आदर्श "य,'र' का परस्पर संबंध स्पष्ट झलके तो वह किसी अन्य काल्पनिक आदर्श "व" पर आश्रित होंगे। अतः "व" के पाठ क,“य,र," की अपेक्षा अधिक शुद्ध, प्राचीन और प्रामाणिक होंगे। यह "व" इन सब प्रतियों का मूल-स्रोत होगा। इस को उपलब्ध सब प्रतियों का काल्पनिक मूलादर्श कहेंगे हैं । 'क, य, र," ( ख, ग, घ,ङ,च,छ ) के आधार पर "व" का पुनर्निर्माण हो सकता है। Aho ! Shrutgyanam

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