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( २७ ) निम्नलिखित चित्र इन प्रतियों के परस्पर संबंध को सूचित करता है
व (काल्पनिक मूलादर्श )
य (कालानिक आदर्श)
र (काल्पनिक आदर्श)
ल (काल्पनिक आदर्श)
इस उदाहरण की सब प्रतियों का परस्पर संबंध शुद्ध है-वह सब किसी एक काल्पनिक मूलादर्श के आधार पर लिखित हैं । संकीर्ण संबंध
उपर्युक्त उदाहरण में हमने कल्पना की थी कि "य" गण की किसी प्रति में "र" गण के विशेष पाठ नहीं आते और इसी प्रकार "र" गण की प्रतियों में 'य" गण के विशेष पाठ नहीं मिलते। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं होता। किसी प्रति की पाठपरम्परा उसके सब भागों में समान नहीं होती। जब एक प्रति एक ही आदर्श के
आधार पर लिखित नहीं होती प्रत्युत अनेक आदर्शों के आधार पर लिपिकृत होती है तो ऐसी अवस्था में प्रतियों के परस्पर संबंध को संकीर्ग कहते हैं । निम्नलिखित चित्र से यह स्पष्ट हो जाएगा।
व ( काल्पनिक मूलादर्श ,
य । (काल्पनिक आदर्श )
र (काल्पनिक | आदर्श )
ल (काल्पनिक आदर्श)
इस चित्र में क,ख,ग,घ,ङ,च,छ का परस्पर संबंध तो शुद्ध है । परंतु क और ख के आधार पर प और ऊ और च के आधार पर फ लिपिकृत हैं अत: प, फ का परस्पर संकीर्ण संबंध है।
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