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( ३ ) उदाहरण-महाभारत आदि० (५७, २१ ) · हास्यरूपेण' K, प्रति में हाम्य हाम्य रूपेण ( हास्य हास्य रूपेण ) का अशुद्ध रूप है। .... निरुक्त २, २८ उतस्य वाजी क्षिपणि तुरण्यात ग्रीवायां बद्धो अपि कक्ष श्रासनि । क्रतुं दधिक्रा............' को लिखते समय CS प्रति के लिपिकार की दृष्ट ' क्रतुं लिखने के पश्चात फिर ' बाजो पर' चली गई और वाजो क्षिपणिं तुरण्यति प्रीवायां बद्धो दुबारा लिखा गया। निरुक्त ६, ८ 'गृह्णासि कर्मा वा' Mi में दुहराया गया है।
(६) व्यत्ययअक्षर, शब्द आदि के परस्पर उलट फेर को व्यत्यय कहते हैं।
उदाहरण-महावीर चरित ३,३७ 'ज्ञानेन चान्यो,' Mt, Md में 'ज्ञाने च नान्यो' । (१,१३।१४) 'मैथिलस्य राजर्षेः', T, xT, में 'रामर्षे मैथिलस्य । किलान्यत,T, अन्यत् किल । ३, १८। १६ Mt 'अरे रे अनड्वन पुरुषाधम', Mg रे पुरुषाधम अनडवन् । महाभारत आदि० (१, २३) उत्तरी शाखा में 'महर्षेः पूजितस्येह स लोके महात्मनः' =दक्षिणी शाखा में 'महर्षेः सर्वलोकेषु पूजितस्य महात्मनः'। (६२,१) उत्तरी 'ततः प्रतीपो राजा स' =द० 'प्रतीपस्तु ततो राजा' ।
इसी प्रकार पंत्तियों का व्यत्यय भी हो सकता है । इ. दोष की उत्पत्ति प्रायः ऐसे होती है कि लिखते साय किसी लिपिकार से कुछ पंक्तियां छूट गई । अपने लेख में कांट-छांट से बचने के लिए लुप्त पाठ को पन्ने पर अन्यत्र लिख दिया । इस प्रति को आदर्श मान कर लिखने वाला इस पाठ को उचित स्थान पर न रख कर अशुद्ध स्थान पर लिख सकता है। इस से उस प्रति को आदर्शभूत मानने वाली प्रतिलिपियों में सदा के लिए पंक्तिव्यत्यय हो जाएगा।
उदाहरण-कर्पूरमंजरी प्रथम अंक, T प्रति में दूसरे और चौथे श्लोकों का व्यत्यय है।
(७) समानार्थशब्दांवरन्यास
किसी शब्द अथवा शब्द-समूह के स्थान पर समान अर्थ वाले किसी अन्य शब्द अथवा शब्द-समूह के लिखे जाने को समानार्थशब्दांतरन्यास कहते हैं ।
१. स्टेन कोनो संपादित, पृ० १ ।
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