Book Title: Bharatiya Sampadan Shastra
Author(s): Mulraj Jain
Publisher: Jain Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ विक्रम संवत से पहले शिलालेखों में यह चिह्न बहुत कम दिखाई देते हैं उनमें कहीं कहीं सीधे और टेढ़े दंड होते हैं । विक्रम की पांचवीं शताब्दी से यह चिह्न नियमित रूप से आते हैं-पाद के अंत पर एक दंड और श्लोक के अंत पर दो दंड । दक्षिण में आठवीं शताब्दी तक के कई लेख और शासन इन के बिना मिलते हैं। संकेत-जिस शब्द को दुहराना होता है, उसको लिखकर '२' का अंक लगा दिया जाता है। हाशिए में ग्रंथ का नाम संक्षिप्त रूप से दिया होता है। कहीं कहीं अध्याय आदि का नाम भी संक्षेप से मिलता है। जैन तथा बौद्ध सूत्रों में एक स्थान पर नगर, उद्यान आदि का वर्णन कर दिया होता है। फिर जहां इन का वर्णन देना हो वहां इसे न देकर केवल 'वएणओ' (वर्णनम् ) शब्द लिख दिया जाता है । इस से पाठक को वहां पर उचित पाठ समझ लेना पड़ता है। पत्र-गणना प्रतियों में पत्रों की संख्या दी होती है, पृष्ठों की नहीं । दक्षिण में पत्रे के प्रथम पृष्ठ पर और अन्यत्र दूसरे पर संख्या दी होती है । यह पत्रे के हाशिए में होती है-बाई ओर वाले में ऊपर और दाई ओर वाले में नीचे। कई प्रतियों में संख्या केवल एक ही स्थान पर होती है। कुछ प्राचीन प्रतियों में पत्र-संख्या अंकों में नहीं दी होती । अपितु अक्षरों द्वारा संकेतित होती है। पत्र-गणना में अंकों को अक्षरों द्वारा संकेतित करने की कई रीतियां हैं । उदाहरण-ऋगर्थदीपिका, भाग १, भूमिका पृष्ठ ३६ से उद्धृत। १ के लिए 8 के लिए द्रे १० , म ३ , न्य ११ , मन १२ , मन्न १३ , मन्य १४ , मष्क n 6m x com ___" मझ महा - १. डा० लक्ष्मण स्वरूप संपादित ऋगर्थदीपिका, भाग १, भूमिका पृष्ट ३८-३६; डिस्क्रिप्टिव कैटॉलॉग श्राफ दि गवर्मेंट कोलेक्षनज़ा आफ़ मैनुस्क्रिप्टस डिपोज़िटेड एट दि भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टिच्यूट, भाग १७,२, परिशिष्ट ३। Aho ! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85