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मैं श्री दिव्यप्रभाजी के पति आगाMar अन्य अनेक स्तोत्रो को भी इसी प्रकार अपने पतिभा उनकी रचना का प्रवाह इधर-उधर की जपरु: निरन्तर गतिशील होता रहे, यही प्रभुचरणो मेरि
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-TIANE
वीरायतन राजगृह, दिहार देव प्रबोधिनी एकादशी १९९१
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