________________
-
-
--
- -
- -
।
प्राकथन
-
-
MAM
TITLJI
जैन परम्परा, बोर एव देदान्न प नि ..... : सुप्रसिद्ध हैं। किन्तु यह भी भक्ति के म्याग में आया
41 जद तक मानव का अन्तईदय रविकोष रे अप्नाद
... " एव माध्य को कैसे स्पर्श कर मना न पापा के .. .. 'शक्रस्तव' (नमोत्युण) आदि स्तोर आनी
है." याचनामुक्त मात्र श्रद्धाप्रधान स्तुनिपरक चतदितिra.. ... मानते हैं, तथापि उसमें “आरोग्ग बोलिलाम मा .2-1 ११५० ".. मम दिसन्तु" के कुछ अश ऐसे हैं, जिनमें गकार गतिमा . . लगे हैं। उत्तरकालीन जैन साहिन्य तो मका और निष्कार इतना विराट रूप ले लेता है कि उसका मारियिक विद्याधर TET
जैन स्तोत्र साहित्य मे आचर्य श्री भद्रबाहु म्यागी माग दिन उवमाना स्पष्ट ही रोग, दुःख एव दुर्गति आदि की मुक्ति की भावरा के लिए काTITT! इसी धारा में नामोल्लेखपूर्वक तीर्थंकरों की भक्ति के ओकलान आगे चलकर आचार्य सिद्धसेन, आचार्य समन्तभद्र एव आचार्य गन्द्र : भक्ति-रचनाएँ दार्शनिकता को स्पर्श करती हुई अग्रगर होती है.जो आज HTTE