Book Title: Bhaktamar Stotra Author(s): Hiralal Jain Publisher: Shastra Swadhya MalaPage 38
________________ (३५) उदय होता है उसो दशा में यंत्र, मन्त्र, तन्त्र सहायक या लाभदायक हो सकते हैं, जब अशुभ कर्म का उदय हो, उस समय यंत्र मन्त्र तन्त्र काम नहीं आते। रावण ने अचल ध्यान से बहुरूपिणी विद्या सिद्ध की थी किन्तु लक्ष्मण के साथ युद्ध करते समय अशुभ कर्म के कारण वह विद्या रावण के काम नहीं आई । इसलिए सदाचार, दान, व्रतपालन, परोपकार आदि शुभ कार्यों द्वारा शुभ कर्म संचय करते रहना चाहिये । श्रेष्ठ बात तो यह है कि समस्त सांसारिक कार्य छोड़ कर, रागद्वेष की वासना से दूर होकर कर्म बन्धन से छुटकारा पाने के लिए शुद्ध आत्मा का ध्यान किया जावे । परन्तु यदि मनुष्य उस अवस्था तक न पहुँच सके तो उसे अशुभ घ्यान, अशुभ विचार, अशुभ कार्य छोड़कर शुभ कार्य, शुभ विचार करने चाहिये। अन्य व्यक्ति को दुःख पीड़ा या हानि पहुँचाने के लिए मन्त्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए । स्व-परहित तथा लोक कल्याण तथा धर्मरक्षा के लिये ही मन्त्र प्रयोग करना उचित है। मन्त्र-साधन करने के दिनों में खान पान शुद्ध सात्विक होना चाहिये, जहाँ तक हो सके एक बार शुद्ध सादा आहार करे। उन दिनों में ब्रह्मचर्य से रहकर पृथ्वी पर सोना चाहिये। शुद्ध धुले हुए वस्त्र पहन कर शुद्ध एकान्त स्थान में बैठना चाहिये, आसन शुद्ध होना चाहिये। सामने लकड़ी के पट्टे पर दीपक जलता रहना चाहिये और अग्नि में धूप डालते रहना चाहिये। विशेष मंत्र-साधन विधि में कुछ फेरफार भी होता है । यन्त्र को सामने चौकी पर रखना चाहिये। . यन्त्र तांबे के पत्र पर उकेरा हुआ हो अथवा भोजपत्र पर अनार को लेखनी से केसर के द्वारा लिखा हुआ हो। मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना जाहिये। मंत्र जपते समय मन को इधर उधर न भटकाना चाहिये । शरीर में एक आसन से अचल बैठे रहने की क्षमता होनी चाहिये।Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152