Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 72
________________ सर्वपर नाशक मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात सन्तानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा। गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा ॥३३॥ मन्द पवन गन्धोदक इष्ट, विविध कल्पतरु पुहुप सुवष्ट । देव करें विकसित दल सार, मानों द्विज पंकति अवतार ॥ _____ अर्थ-हे नाथ ! सुगन्धित जल बिन्दुओं और मन्द पवन के साथ, मंदार, नमेरु, पारिजात आदि कल्पवृक्षों के पुष्पों की मनोहर वर्षा आपके ऊपर देवों के द्वारा आकाश में ऐसी होती है, मानों पक्षियों की पंक्ति ही है ॥३३॥ ऋद्धि-ॐह्रीं अहं णमो सव्वोसहि पत्ताणं । ___ मन्त्र-ॐ ह्रीं श्रीं कलीं ब्लू ध्यान-सिद्धि-परम-योगीश्वराय नमो नमः स्वाहा। . . '९९ ॥३३॥ Like Thy divine utterances falls from the sky the shower of celestial flowers such as the Mandara, Nameru, Parijata and Santanaka accompanied by gentle breeze that is made charming with scented water drops 33.

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