Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 138
________________ मन्येवरंहरिहरादय एवदृष्टा नहीं अर्हगमोपण सम| कंदं कं इंक मन मो 15 य 12 ग य | ते कंस कदंदं दं पार्नुनमः श्रीमणिभद्र दृष्टेपुयेषु हृदयंत्वयितोषभेति देश त्रुभ । कंक्षदंदं सं सं .. जयविजयअपराजितेसर्वसौभाग्यं किंवीक्षितेन भवता भुवियेन नान्यः सर्वसौख्यकुरु कुरु स्वाहा। | द इंदं से संसं यनि ... प्राच्येवदिजनयतिस्फुरदंशुजालम्२२ || कश्चिन्मनोहरतिनाथभवान्तरेऽपि २१ अवधारणंकुरुकुरुस्वाहा । स्त्रीणांशांनिशतशोजनयन्तिपुत्रान् । हीं अर्हगमोआगासगामिणं (श्रीश्रीश्रीश्री (श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीं AS. तर सौसाक्षी साक्षी सोसोक्षों सौ नमोश्रीवीरेहिंजूंभयभय नान्यासुतंत्वदुपमंजनी प्रसूता। भी भी भौभी भी ETIN मोहयमोहय स्तपयस्तंभय सर्वा दिशोधति भानिसहस्ररश्मेिं :

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