Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 144
________________ मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजात कहीं एमोसोसहि पत्ताएं हीं हीं हीं हीं हीं नमो नमः स्वाहा। लीं दीत्याजयत्यपि निशामपिसोमसोम्याम् ३४ दिव्यादिवः पततिते वचसां ततिर्वा ३३ नमो नमः स्वाहा। फं फं फं ली ॐ न्हीं हीं परमयोगीश्वराय गन्धोदबिन्दुशुभमन्दमरुत्प्रपाता ऊँ की शुम्भत्प्रभावलयभूरिविभा विभोस्ते मोखिल्लो सहि पत्ताणं । फं फं फं फं फं 16 tr. the न्हीं हीं हीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हूं ध्यान सिद्दि सन्तानकादिकुसुमोत्करवृष्टिरु - दा । क्लीं प च मः य हां म फं फं फं फं फं tekteblich झ ft. $1. कुनमोही श्रींक्लीं ऐ लोकत्रययुतिमतां युतिमाक्षिपन्ती । प्रौद्यद्दिवाकरनिरन्तर भूरिसंख्या

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