Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala
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सोऽहं तथापितव भक्तिवशान्मुनीश कीं जीं जीं कीं जीं कीं झीं एगमोतो हिज
ग्रीग्रिग्रग्री ग्रीग्रीग्री
नाभ्येतिकिं निजशिशोः परिपालनार्थम् ५ झीं कीं श्रीं श्रीं श्रीं झीं भ्योनमोनमः स्वाहा।
ग्रींग्रींग्रींग्रीग्रींग्री
तच्चारुचूतकलिकानिकरैकहेतु ६
ग्लों
६ विद्याप्रसाद कुरुकुरुस्वाहा ।
ग्रींग्रीग्रीग्रीग्रीग्री
- एसएन हीं श्रीं क्लींकी सर्वसंकझीं कीं जीं कीं जीं की कर्तुस्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः ।
ग्लौं
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टनिवारऐयः सुपार्श्वयक्ष
ीं कीं मरीं श्रीं श्रीं जीं प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगोमृगेन्द्रं
अल्पश्रुतं श्रुतवतांपरिहासधाम ह्रौं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ही एमोबुद्धीए ।
श्री
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श्री
थः ठः ठः सरस्वती भगवती
ह्रीं
श्रांश्रीश्रूश्रः हंसं थथ
想想想娘想想
यत्कोकिलः किलम धौ मधुरं विरौति
त्वद्भक्तिरेव मुरवरीकुरुतेबलान्माम् ।
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