Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 73
________________ गर्भ रक्षक शुम्भत्प्रभा-वलय-भूरि-विभा विभोस्ते, लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमा-क्षिपन्ती। प्रोद्यद्दिवाकर-निरन्तर-भूरि-संख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्याम् ॥३४॥ तुम तन भामण्डल जिनचंद, सब दुतिवन्त करत है मंद । कोटि शंख रवितेज छिपाय, शशि निर्मल निशि कर प्रछाय॥ अर्थ-हे भगवन् ! आपके शरीर से निकली हुई कान्ति का गोलाकार मण्डल यानी भामण्डल जगत् के सभी प्रकाशमान पदार्थों की कांति को फीका कर देता है । करोड़ों सूर्यों के एकत्रित प्रकाश से भी अधिक प्रकाशमान भामण्डल की प्रभा से चांदनी रात भी फीकी हो जाती है ॥३४॥ अर्थात् भामण्डल का प्रकाश सूर्य और चन्द्र से भी अधिक होता है। ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो खिल्लो-सहि-पत्ताणं । मन्त्र-ॐ नमो ह्रीं श्रीं ऐं ह्यौं पद्मावत्यै देव्यै नमो नमः स्वाहा । ....O Lord! Thine luminous halo, endowed with great effulgence, surpasses the lustre of all the luminaries in the worlds; and though it (Thine halo) is made up of the radiance of many suns Tising simultaneously, yet it outshines the night decorated with the gentle lustre of the moon, 34. .

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