Book Title: Bhaktamar Stotra Author(s): Hiralal Jain Publisher: Shastra Swadhya MalaPage 81
________________ (४२) युखः भय निवारक वल्गत्तुरंग-गज-गजित-भीम-नाद - माजो बलं बलवतामपि भू-पतीनाम् । उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं, त्वत्कीर्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥४२॥ जिस रनमाहि भयानक शब्द कर रहे तुरङ्गम, - घन से गज गरजाहिं मत्त मानो गिरि जंगम । अति कोलाहल मांहि बात जस नांहि सुनीज, . राजन को परचण्ड देखि बल धीरज छोज । नाथ तिहारे नामतें, अघ छिममाहि पलाय । ज्यों दिनकर परकाशतें, अन्धकार विनशाय ॥ ' अर्थ-हे विश्व उद्धारक देव ! जहाँ घोड़े भयानक हींस रहे हैं, हाथी चिघाड़ रहे हैं, (भयानक अस्त्र शस्त्र चल रहे हैं) घमासान लड़ाई से उड़ती हुई धूल ने सूर्य का प्रकाश भी छिपा दिया है, ऐसी भयानक युद्धभूमि में आपका स्मरण करने से बलवान् राजाओं की सभी सेना ऐसे फट जाती है जैसे सूर्य उदय होने से अन्धकार फट जाता है ॥४२॥ ऋद्धि-ॐ ह्री अहं णमो सप्पिसवाणं। मंत्र- ॐ नमो णमिऊण विषधर-विष-प्रणाशन-रोग-शोक दोषग्रह-कप्पदुमच्चजाई सुहनाम-गहण सकलसुहदे ॐ नमः स्वाहा। Like the darkness dispelled by the lustre of the rays of the rising sun, the army, accompanied by the loud roar of the prancing horses and elephants, even of powerful kings, is dispersed in the battle-field with the mere recitation of Thy name. 42.Page Navigation
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