Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 78
________________ (३६) सिंह भय निवारक भिन्नेभ-कुम्भ-गल-दुज्ज्वल-शोणिताक्त मुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः । बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणा-धिपोपि, नाकामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥३६॥ मति मदमत्त गयन्द कुम्भथल नखन विदार, मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगार। बांकी दाढ़ विशाल वदन में रसना लोल, . ___भीम भयानक रूप देखि जन थरहर डोले ॥ ऐसे मृगपति पद तलें, जो नर पायो होय । . शरण गहे तुम चरण की, बाधा करै न सोय ॥ - अर्थ-हे विभो ! हाथो के मस्तक को अपने नाखूनों से फाड़कर जिसने रक्त से भीगे गजमुक्ताओं (मोतियों) से पृथ्वी सजा दी है, तथा शिकार करने के लिये तैयार, ऐसा विकराल सिंह अपने पंजों में आये हुए आपके चरणों की शरण लेने वाले मनुष्य पर आक्रमण नहीं करता है ।,३६॥ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो वचवलीणं । मंत्र-ॐ नमो एषु वृत्तेषु वर्द्धमान तव' भयहरं वृत्तिवर्णायेषुः मंत्रा:पुनः स्मर्तव्या अतोना-परमंत्र-निवेदनाय नमः स्वाहा। Even the lion, which has decorated a part of the earth with the collection of pearls besmeared with bright blood flowing from the pierced heads of the elephants, though ready to pounce, does not attack the traveller who has resorted to the mountain. of Thy feet. 39.

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