Book Title: Bhaktamar Stotra Author(s): Hiralal Jain Publisher: Shastra Swadhya MalaPage 45
________________ ( ६ ) विद्या प्रदायक अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्भक्ति-रेव मुखरी- कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाप्र-चारु - कलिका-निकरैक - हेतु ॥ ६ ॥ मैं शठ सुधी- हँसन को धाम, मुझ तुव भक्ति बुलावे राम । ज्योंपिक श्रम्ब - कली परंभाव, मधु ऋतु मधुर करै श्राराव ॥ अर्थ - भगवन् ! मैं बुद्धिमानों के उपहास करने योग्य अल्पज्ञ हूँ फिर भी आपकी भक्ति ही मुझे आपका स्तवन करने को प्रेरित करती है । वसन्त ऋतु में जो कोयल मीठी वाणी बोलती है उसका कारण आम के वृक्षों पर आने वाला बोर (फूल) ही होता है || ६ || ऋद्धि - ॐ ह्रीं अहं णमो कुट्ठ बुद्धीणं । मन्त्र - ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं श्रं श्रः हं सं थ थ थः ठः ठः सरस्वती भगवती विद्या प्रसादं कुरु कुरु स्वाहा । Though my learning is poor, and I am the butt of ridicule to the learned, yet it is my devotion towards You, which forces me to be vocal. The only cause of the cuckoo's sweet song in the spring-time is indeed the charming mango buds. 6.Page Navigation
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