Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 48
________________ सर्वभय निवारक आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोष, त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस-किरणः कुरुते प्रभव, __ पद्माकरेषु जलजानि विकास-भाजि ॥६॥ तुम गुन महिमा हत तुख-दोष, सो तो दूर रहो सुखपोष। पापविनाशक है तुम नाम, कमल विकासी ज्यों रविधाम ॥ __अर्थ-हे प्रभो ! सर्व दुख दोषनाशिनी आपकी स्तुति की बात ही क्या, केवल आपका नाम लेना भी जगत के पाप नष्ट कर डालता है। जिस तरह सूर्य बहुत दूर रहता हुआ भी प्रकाश करता है तथा कमलों के वन में कमल के फूलों को विकसित कर देता है ॥६॥ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो अरिहंताणं णमो संभिण्ण-सोदराणं हां ह्रीं ह्र ह्रः फट् स्वाहा। - मन्त्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्रौं इवीं रः रः हं हः नमः स्वाहा । Let alone Thy eulogy, which destroys all blemishes even the mere mention of Thy name destroys the sins of the world. After all the sun is far away, still bis mere light makes the lotuses bloom in the tanks. 9.

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