Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 58
________________ (१६) जादू-टोनादि-प्रभाव नाशक किं शर्वरीषु शशिनान्हि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेन्दु-दलितेषु तमःसु नाथ । निष्पन्न-शालि-वन-शालिनि जीव-लोके, कार्य कियज्-जलधरर्जल-भारनमः ॥१६॥ निशदिन शशि रविको नहिं काम, तुम मुखचन्द हर तम धाम जो स्वभावतें उपजे नाज, सजल मेघ तें कौनहु काज । अर्थ-हे नाथ ! आपके मुखचन्द्र द्वारा जब जनता का मोहअज्ञान-अन्धकार नष्ट हो गया तो दिन के समय सूर्य और रात्रि के समय चन्द्रमा से कुछ प्रयोजन नहीं रहा । धान्य के पक जाने पर संसार में जल से भरे हुए बादलों की क्या आवश्यकता है ? ॥१६॥ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो विज्जाहराणं। मंत्र-ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रः यक्ष ह्रीं वषट् नमः स्वाहा । - When Thy lotus-likk face, O Lord, has destroyed the darkness, what's the use of the sun by the day and moon by the night ? What's the use of clouds heavy with the weight of. water, after the ripening of the paddy-fields in the world. 19.

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