Book Title: Bhaktamar Stotra
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Shastra Swadhya Mala

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Page 62
________________ (२३) प्रेत बाधा निवारक त्वामा-मनन्ति मुनयः परमं पुमांस मादित्य-वर्ण-ममलं तमसः पुरस्तात् त्वामेव सम्य-गुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, नान्यः शिवः शिव-पदस्य मुनीन्द्र पन्थाः॥२३॥ पुरान हो पुमान हो पनीत पुण्यवान हो, ___ कहैं मुनीश अन्धकार नाश को सुभान हो। महंत तोहि जानि के न होय वश्य काल के, न और कोइ मोख मन्थ देय तोहि टाल के ॥ अर्थ- हे मुनिनाथ ! मुनिगण आपको महान् पुरुष, अन्धकारहारक निर्मल सूर्य कहते हैं। मनिगण आपकी उपासना करके मृत्यू पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। आपकी उपासना के सिवाय अन्य कोई मोक्ष का सुखदायी मार्ग भी तो नहीं है ॥२३॥ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो आसी-विसाणं । मन्त्र ॐ नमो भगवती जयावती मम समीहितार्थं मोकसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा । The great sages consider You to be the Supreme Reing, Who possesses the effulgence of the sun, is free from blemishes, and is beyond darkness. Having perfectly realized You, men even conquer death. O Sage of sages ! there is no other auspicious' path (except You) leading to Supreme Blessedness, 23.

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