Book Title: Bhaktamar Stotra Author(s): Hiralal Jain Publisher: Shastra Swadhya MalaPage 51
________________ ( १२ ) हस्तिमद निवारक यैः शान्त - राग - रुचिभिः परमाणु-भिस्त्वं, निर्मापितस्त्रि-भुवनैक - ललाम-भूत । तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां, यत्ते समान-मपरं न हि रूपमस्ति ॥ १२ ॥ प्रभु तुम वीतराग गुणलीन, जिन परमाणु देह तुम कीन । हैं तितने ही ते परमाणु, यातं तुम सम रूप न श्रानु ॥ अर्थ - हे त्रिजगत के अलङ्कार ! जिन शान्तिमय परमाणुओं से आपके शरीर का निर्माण हुआ ( बना ) संसार में वे परमाणु केवल उतने ही थे, इसी कारण आपके समान शान्त वीतराग रूप और किसी देव का नही दिखाई देता ।। १२ ।। ऋद्धि-ॐ ह्रीं प्रर्हं णमो वोहि- बुद्धी ।। मन्त्र — ॐ आं आं अं अः सर्व राज-प्रजामोहिनी सर्व जन वश्यं कुरु कुरु स्वाहा । O supreme ornament of all the three worlds! As many indeed in this world were the atoms possessed of the lustre of non-attachment, that went to the composition of Your body and that is why no other form like that of Yours exists on this earth. 12.Page Navigation
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