Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ जिएं जीवन-का-दर्शन तरह जी रहा है । आपने एम० ए० की डिग्री ली थी, उसका क्या हुआ ? ज्ञान का उद्देश्य केवल डिग्री हासिल करना या आजीविका हासिल करना नहीं है। ज्ञान बेचने-खरीदने का गणित नहीं है। वह जीने की कला सिखाता है। अनुभव का अर्थ स्वाद चखना है। जो आदमी स्वाद को चख लेता है वह समझ जाता है। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूक कर पीता है, क्योंकि देखने में दोनों सफेद होते हैं । यह अनुभव का शास्त्र है। एक आदमी पहली बार समुद्री जहाज पर यात्रा के लिए सवार हुआ। अपनी कुर्सी पर जाकर बैठने से पूर्व उसने जहाज के कप्तान-चालक से पूछा- 'क्यों भाई साहब ! आपने पैट्रोल वगैरहा पूरा भरवा लिया है ना ?' चालक चौंका। उसने संभलकर जवाब दिया---'हां ।' वह व्यक्ति थोड़ी देर बाद फिर चालक के पास पहुँचा। जहाज तब तक रवाना नहीं हुआ था। उसने पूछा-'चालक साहब ! आपने जहाज के इंजन वगैरहा तो जांच कर लिए हैं ना ?' अब चालक को गुस्सा आ गया। वह बोला—'चालक अाप हैं या मैं ? मैंने सब जांच कर ली है। सब ठीक-ठाक है। आप जाइए अपनी जगह बैठ जाइए।' वह आदमी बोला-'नाराज मत होइए ! दरअसल मैंने आज तक बसों में ही सफर किया है। बसों वाले अक्सर रास्ते में यह कहकर नीचे उतार देते हैं 'डीजल खत्म हो गया', 'इंजन में खराबी आ गई है।' और फिर कहते हैं'धक्के लगायो । इसलिए मैं निश्चित होना चाहता हूँ कि आप मुझे धक्का लगाने को तो नहीं कहेंगे।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116