Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ २६ भगवत्ता फैली सब ओर रूप से स्वाध्याय किया जाए। मैं स्वाध्याय इसलिए करता हूँ ताकि मेरे भीतर ज्ञान की प्यास बनी रहे । याद रखिएगा, आपकी उम्र अस्सी - नब्बे वर्ष हो जाए, फिर भी स्वाध्याय मत छोड़ना । जिस दिन यह संसार छोड़कर जानो, यह कामना करना कि ये ज्ञान, ये संस्कार अगले जन्म में भी प्रकट हो जाएं । मृत्यु के जन्म में आपने देखा होगा, कई बार एक छोटा बच्चा भी काफी ज्ञान की बातें कह देता है । नचिकेता की उम्र आठ वर्ष ही तो थी, मगर उसके ज्ञान के समक्ष यमराज और धर्मराज के भी छक्के छूट गए थे । इज्जत या सम्मान केवल उम्र के कारण नहीं होता, अपितु ज्ञान के कारण होता है । समय जो ज्ञान के संस्कार लेकर मरता है उसे दूसरे भी उसका बोध हो जाता है। अगला जन्म अज्ञानपूर्ण न हो, इसलिए स्वाध्याय करते चले जाओ। यह मत सोचो कि इतनी उम्र हो गई, अब क्या पढ़ें ! स्वाध्याय करते चले जाओ, जितनी चर्चाएं कर सकते हो, करते रहो क्योंकि ज्ञान और सत्य बहुत बार चर्चाओं से भी मिलता है । इसलिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए चर्चा करो । मगर अकबर का भरपूर चर्चाएं करें। हर आदमी के सुनने का प्रयास करें । सत्य को पाने का यही है । हिन्दुस्तान में इतने सम्राट हुए, जो स्थान है, वह अप्रतिम है । वह एक मात्र ऐसा सम्राट था जिसने सत्य के लिए अपने भीतर प्यास जगाई । उसने बहुत से धर्मों के ग्रन्थों का अध्ययन किया और 'दीन-ए-इलाही' के नाम से एक ऐसा सम्प्रदाय बनाने का प्रयास किया जो सभी Jain Education International For Personal & Private Use Only जीवन के अनुभव एक मात्र तरीका www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116