Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 97
________________ भगवत्ता फैली सब ओर महिला गंजी थी। उसने अपने पति से कहा कि जाओ किसी नाई को पकड़ लाओ, फिर पूरण-पोली बनेगी। पति हैरान और परेशान। फिर भी बेचारा गया। जब वह नाई को लेकर पा रहा था तो उसकी पड़ोसन मिली। उसने पूछा कि नाई की कहाँ जरूरत पड़ गई। उसने सारा किस्सा सुनाया तो वह बोली--‘भाई साहब, भाभीजी उस व्यंजन के बनाने की विधि ही भूल गई होगी। बाहर से अब सफेद साड़ी पहनो या गंजी हो जायो, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ।' बाहर की सजावट से कुछ न होगा। वास्तविक ज्ञान जरूरी है। इसकी शुरुआत तो हमें सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र से ही करनी होगी। पानी खौल गया हो तो उसमें से उठने वाली भाप यह बता देगी। भीतर अगर परिवर्तन की क्रांति घटित हो गई तो वह चारित्र हमेशा शुद्धतम ही होगा। वह आरोपित न होगा। सम्भव है, वह शास्त्र में न मिले, मगर वह अात्मा की पुस्तक में जरूर मिलेगा। वह स्वयं के संविधान में से निकलेगा। कुन्दकुन्द कहते हैं असली लिंग तो धर्म-लिंग है और वह भीतर का लिंग है। बाहर का लिंग सहायक जरूर हो जाएगा मगर वह अधूरा ही रहेगा। जो बाना पहन रखा है, उसका उतना मोल नहीं है जितना तुमने समझ लिया है। वह तो सिर्फ याद दिलाने के लिए है कि तुम कहाँ हो ? और तुम्हारा स्थान कहाँ है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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