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सम्भावनाएँ प्रात्म-अनुष्ठान की
लकीर जैसी है कि बीता समय लौट कर नहीं आता। रुठे हुए देव को प्रसन्न करना आसान है, मगर रुठे समय को मनाकर लाना, पत्थर में से पानी निकालने के प्रयास जैसा है। यह काम तो मुमकिन ही नहीं है। नदी में जो पानी बह गया, वह लौटाया नहीं जा सकता। हमें नए का इन्तजार करना ही पड़ेगा।
आदमी अपने वर्तमान और भविष्य के प्रति सचेत रहे, तो कहीं कोई भी परेशानी नहीं है मगर आदमी का सारा झुकाव अतीत की ओर है। वह स्मृतियों का मोह नहीं छोड़ पाता। इसलिए जब भी वह एकांत में होता है, वह वर्तमान के उपयोग और भविष्य के निर्माण के बारे में नहीं सोचता । वह केवल अतीत से जुड़ा रहता है। जो बीत गया, उन यादों में खोया रहता है। यह जानते हुए भी कि जो बीत गई सो बात गई, मगर आदमी भी क्या करे ? वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता और इसी कारण अतीत उसका पीछा नहीं छोड़ता। वह केवल अतीत के बारे में सोचता रहता है और यह सोच ही सम्मोहन का कारण बनता है ।
__ कहते हैं, एक बार देवताओं में बहस छिड़ गई। राम और लक्ष्मण में जितना प्रेम है, उसकी तुलना नहीं की जा सकती। एक देवता को यह बात कुछ अतिशयोक्ति पूर्ण लगी। वह राम के शरीर में प्रविष्ठ हो गया। राम तुरन्त निष्प्राण हो, गिर पड़े। वैद्य ने कहा राम जा रहे हैं। लक्ष्मण हतप्रभ
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