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सम्भावनाएँ प्रात्म-अनुष्ठान की
कैसे करते हो ?' राम की आँखें खुली, अरे ! मैं क्या पागलपन कर रहा हूँ।
पेड़ से पत्ता गिर चुका है। मनुष्य उसे पुन: पेड़ पर चिपकाने का प्रयास करता है। आदमी का यही सम्मोहन तो मिथ्यात्व है। वह अपने बीत चुके अतीत से जुड़ा रहना चाहता है। जब तक यह सम्मोहन रहेगा, वह वर्तमान से जुड़ नहीं सकता और वह आगे नहीं बढ़ सकेगा। दुर्योधन की राजसभा में भीष्म-पितामह जैसे देव-पुरुष, विदुर जैसे नीतिकार, गांधारी जैसी महासती माँ, द्रोण और कृपाचार्य जैसे धुरन्धर विद्वान थे, वहाँ भी रोजाना धर्म और नीति के वाक्य दुर्योधन पर असर नहीं कर सके और वह अधर्मी होता गया। असल में वह उन चीजों से जुड़ ही नहीं पाया।
दुर्योधन कहा करता था-'जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिः, जानामि धर्म न च मे निवृत्तिः ।' मैं धर्म को जानता हूँ मगर उसमें प्रवृत्त नहीं हो पाता। मैं अधर्म को भी जानता हूँ मगर उससे निवृत्त नहीं हो पाता। इसका कारण है सम्मोहन । मुझे राज्य का राग, शत्रुता का राग नहीं छोड़ पाता। जहाँ व्यक्ति धर्म में प्रवृत्त नहीं हो पाता, वहीं सम्मोहन उसे घेरे रहता है। यदि कोई व्यक्ति मूर्छा में है, आप उसे नीति-ज्ञान की गंगा में नहला दीजिए, वह सूखा ही रहेगा। उसे धर्म की बात सुहाएगी ही नहीं। किसी को ज्वर ने जकड़ा
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