Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 107
________________ १०२ भगवत्ता फैली सब ओर हो और हम उसे मिठाई खिलाएं, उसे अच्छी लगेगी क्या ? फिर मूढ़ आदमी को धर्म कैसे सुहाएगा। __ मनुष्य के भीतर यह मूर्छा, कहीं ऊपर से आरोपित नहीं की गई हैं। यह उसके भीतर से ही आई है। कोई आदमी नशा करता है तो शराब पीता है। शराब के कारण उसे नशा आता है। नशा आदमी के भीतर नहीं था। उसने शराब पी और नशे को अपने भीतर आरोपित कर लिया। फिर वह नशा उसके सिर पर चढ़कर बोलने लगा। शराब पीकर आदमी गालियाँ बोलने लगा। ये गालियाँ शराब के कारण आई। आदमी सारे अपराध बेहोशी में करता है । होश हो तो अपराध नहीं हो पाएगा। ___ एक शराबी रात में देरी से घर पहुंचा। नशे में धुत्त था। घर पहुँचकर बाहर लगा ताला खोलने का प्रयास करने लगा, मगर ताला उसे नजर ही नहीं आ रहा था। वह रोजाना देर से घर लौटता था इसलिए जाते समय घर के ताला लगाकर जाता था। उस दिन जब काफी देर तक उससे ताला नहीं खुल पाया तो उसकी खट-खट से जागी उसकी पत्नी ने ऊपर की खिड़की से झांक कर कहा- क्या हुआ ? चाबी खो गई क्या? दूसरी चाबी फेंकू ?' शराबी बोलाचाबी तो है, मगर ताला खो गया है। हो सके तो ऊपर से ताला फेंक दो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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