Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 116
________________ भगवत्ता फैली सब ओर कन्दकुन्द को कैसे धन्यवाद दूँ, जिसकी भगवत्ता सब ओर फैली है। यह भगवत्ता आत्मा का सौभाग्य है। बिना कुन्दकुन्द के अध्यात्म की बातें सूनी-सूनी लगती हैं। कुन्दकुन्द ने जिया है अध्यात्म को, प्यास बुझाई है जन्म-जन्मान्तर की। इसलिए उनका अध्यात्म हृदय-मन्दिर का हंसता हुआ प्रकाश है। उनके वक्तव्य कल तो जीवित थे ही, उसकी धार आज भी रसीली है। अपना हृदय लाओ, पंडिताई नहीं, ताकि कुन्दकुन्द को सुनना अनायास जीवन-क्रान्ति हो जाए। -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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