Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 102
________________ सम्भावनाएँ प्रात्म-अनुष्ठान की जीवन और अध्यात्म एक दूसरे से इस तरह जुड़े हुए हैं कि उन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। बिना अध्यात्म का जोवन कभी जीवन हो नहीं सकता और बिना जीवन का अध्यात्म जीवन्त नहीं हो सकता। अध्यात्म में दो शब्द हैं : अधि और आत्मा। इसलिए इसका अर्थ हुआ, जो फैलाव लिए है, प्रात्मा से जुड़ा हुआ है। मनुष्य का सीधा सम्बन्ध एक मात्र मानवीय जीवन से है। मनुष्य स्वयं अपने आप में एक जीवन-मूल्य है। इसलिए जीवन बिना अध्यात्म हो ही नहीं सकता। 'जीवन' शब्द मूलतः 'जीव' से बना है। जीवन का सारा खेल जीव से ही है। जीव और आत्मा में फर्क है। यद्यपि जीव ही आत्मा है और आत्मा ही जीव, मगर इसमें थोड़ा फर्क है। जीव तो उसे कहा जाएगा जिसका संसार में प्रागमन जारी है और आत्मा उसे कहेंगे जो संसार से मुक्त हो चुका हो। इसलिए हम सब अपने आप को प्रात्मा होने के बावजूद जीव ही कहेंगे। हम आत्मा तो तब बन पाते हैं जब विशुद्ध रूप से अध्यात्म और आत्मा का अनुष्ठान हो जाए। इस लिए जीवनमुक्ति का नाम प्रात्मा है और जीवन-युक्ति का नाम जीव है। हम अपने जीवन के ताने बाने को देखें तो वे समान ही हैं। कहीं विकल्प के रूप में सीता धरती से पैदा हो जाए, या कोई परखनली से जन्म जाए वह अलग है, शेष के जीवन का स्रोत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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