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भगवत्ता फैली सब ओर
सकती। तो मुक्ति का सम्बन्ध क्या केवल नग्नता से है ? केवल बाहर के परिवर्तन को ही सब कुछ मान लिया जाता तो शायद अब तक सारे के सारे लोग मुक्त हो जाते।
हम समझते हैं, हमने कपड़े पहन लिए तो हमारा नंगापन छिप गया। कपड़ों के भीतर तो नंगे ही हैं। और हमने भी कपड़े कहाँ पहन रखे हैं, कपड़े तो हमारे शरीर ने पहन रखे हैं। कुन्दकुन्द का आज का सूत्र बहुत क्रांति का सूत्र है। वे यही कहेंगे कि तुम बाहरी भूमिकामों को अपने पर आरोपित कर रहे हो। जबकि तुम्हें अपनी मूर्छा को तोड़ना है, अपने परिग्रह को तोड़ना है। प्राज का वक्तव्य उस मूर्छा को तोड़ने की ही बात कहता है :
धम्मेण होइ लिंगं, रण लिंगमत्तेण धम्म संपत्ती।
जाणेहि भावधम्म, किं ते लिंगेण कायव्वो । धर्म-सहित तो लिंग होता है, परन्तु लिंग मात्र से ही धर्म की प्राप्ति नहीं है। इसलिए तू भाव रूप धर्म को जान, केवल लिंग से क्या होगा?
गुरु अपने शिष्य से कह रहे हैं 'भाई ! केवल लिंग से क्या होगा? बाहर से अपने को सजा लिया, मगर जब तक भीतर की सुन्दरता नहीं होगी, बाहर की सुन्दरता बेकार है । धर्म सहित लिंग तो भीतर का लिंग है। बाहर से तो परिवर्तन होते ही रहेंगे। जब तक भीतर से परिवर्तन न होगा तब तक जन्म-जन्मान्तर की साधना के बावजूद वास्तविक परिवर्तन
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