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भगवत्ता फैली सब ओर
धर्म की प्राप्ति नहीं होती। इसलिए तू भावरूप से धर्म को जान, केवल लिंग से तो कुछ भी नहीं होगा।
बगैर धर्म का बाह्य लिंग उल्टे घड़े पर पानी डालना है, गधे की पीठ पर चन्दन का लादा ढोना है। नींद खोलें भावों की। भाव-निद्रा से जगना ही धार्मिकता है, धर्म की वास्तविकता है। हृदय की आँखें मुक्त हो, पार चलें कुहरे के ।
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