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नींद खोलें भावों की
कहेंगे, जिससे सत्य उद्घाटित हो सकता हो। इसलिए उनका पहला चरण है सम्यक् दर्शन, फिर सम्यक् ज्ञान और अन्त में है सम्यक् चारित्र्य । केवल चारित्र्य को महत्त्व देना प्रारम्भ कर दिया तो बाहर से तो आदमी बदल जाएगा मगर उसके भीतर बदलाव नहीं श्रा पाएगा । भीतर विष है, तो शान्त रहने की कोई भले ही प्रतिज्ञा ले ले, पर विष कभी भी प्रकट हो सकता है । इसलिए विष मिटाश्रो निर्विष की फुफकार खतरनाक नहीं होती ।
एक साधक गुरु की तलाश में इधर-उधर घूमा । अन्त में वह हिमालय में तपस्या कर रहे एक तपस्वी के पास पहुँच गया । महाराज कड़ाके की ठण्ड में एक पांव पर खड़े रहकर तप कर रहे थे । साधक ने सोचा ये गुरु बनाने योग्य हैं । उसने महाराज से कहा- मैं बहुत दूर से और गर्म प्रदेश से आया हूँ । यहाँ मुझे कड़ाके की ठण्ड लग रही है, आप मुझे थोड़ी सी आग दे दीजिए । महाराज ने कहा कि यहाँ आग नहीं है । रहना है तो ऐसे ही रहो । वह थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला - महाराज मुझे आप थोड़ी सी आग दे दीजिए । महाराज ने समझाया कि भइया यहाँ आग क्या एक चिनगारी भी न मिलेगी, क्यों अपना और मेरा समय खराब करते हो, चले जाओ । वह आदमी भी ढीठ था, बोला- महाराज 'इतनी' सी आग दे दीजिए। अब महाराज को गुस्सा आ गया, बोले- 'अजीब पागल आदमी हो, मैं कह रहा हूँ कि आग नहीं है और तुम मांगे चले जा रहे हो ।
अब जो आग
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