________________
नींद खोलें भावों की
८५
भी जीवन में परिवर्तन की प्रभावना देने में सक्षम हो सकता है। उसका मौन इतना भारी होता है कि हजारों-हजार शब्द भी वहाँ बौने नजर आते हैं।
क्रोध को शांत करने का और कोई उपाय हो या न हो, मौन बड़े से बड़े क्रोध को शांत करने में सक्षम है। क्रोध तभी होता है जब बोलने वाला कोई हो। जहाँ मौन होगा, वहाँ क्रोध कैसे पा सकेगा? आग तब तक ही जलती रहेगी, जब तक उसमें लकड़ियाँ डाली जाती रहेंगी। आग में लकड़ियाँ डालनी बन्द कर दीजिए, वह थोड़ी देर में ही बुझ जाएगी। ऐसा ही क्रोध और मौन का अर्थ है। 'बोल' का ईंधन डालना बन्द कर दीजिए, मौन हो जाइए, क्रोध अपने आप समाप्त हो जाएगा।
प्राचार्य कुन्दकुन्द के वक्तव्य सचमुच ऐसी प्रभावना हैं कि अगर अपना बुझा हुआ दीप उनके पास ले जाओगे तो उनकी ज्योति से उस दीप को ज्योतित कर सकोगे। वे बांटेंगे तो उनकी ज्योति कम न होगी, हाँ तुम्हारा दीपक जरूर जल जाएगा, तुम अपने आपको रोशन कर सकोगे। 'प्रभावना' शब्द का अर्थ समझने के लिए एक आविष्कारक का नाम लेना आवश्यक समझता हूँ। एक बहुत बड़ा आविष्कारक हुआ जिसका नाम था कार्ल-गुस्ताव-जुग। कुन्दकुन्द और महावीर ने जिसे प्रभावना कहा, कार्ल-गुस्ताव-जुग ने 'सिनक्रॉनिसिटी' नाम दिया। इसका अर्थ यह होगा कि वो संगीत, वो तरंग,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org