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भगवत्ता फैली सब ओर
जिसके बजने से दूसरा अपने आप प्रभावित हो जाए । इधर तानसेन की स्वर लहरी छिड़ी, उधर जंगल के जानवर झूमने लगे । इधर दीप - राग गाना शुरू किया, उधर दीप जलने लगे । सूरज अगर आसमान में निकलता है तो कमल का खिलना तय है । एक का खिलना, दूसरे के खिलने का कारण बनता है । यही प्रभावना है । इसलिए कुन्दकुन्द के वक्तव्य बहुत प्रभावी हैं । प्रभावनाकारी हैं ।
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हमें अपना भीतर का दरवाजा खोलने की जरूरत भर है, मेहरबानियां अपने आप चली आएंगी । कुन्दकुन्द की साधना का मार्ग सूक्ष्मतम है । सूक्ष्मतम इसलिए क्योंकि उनकी साधना भीतर से बाहर तक जुड़ी हुई है । यहाँ तक जो अभिव्यक्ति हो रही है, वह अनुभूति की अभिव्यक्ति है । इसलिए कुन्दकुन्द का चारित्र्य काल्पनिक या श्रारोपित नहीं है । वह दर्शन से उपजा चारित्र्य है । वह सम्यक् ज्ञान से उद्घाटित और उत्पन्न हुआा चारित्र्य है ।
पहली चीज है सम्यक् दर्शन, फिर सम्यक् ज्ञान और अन्त में सम्यक् चारित्र्य । हम उल्टा चलते हैं, पहले सम्यक् चारित्र्य, फिर ज्ञान और अन्त में दर्शन । आदमी पहले साधु बनता है, फिर स्वाध्याय करता है और ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करता है ।
कुन्दकुन्द अपने मार्ग से चलते हैं। वे किसी की अनुकूलता के हिसाब से कुछ नहीं कहेंगे । कुन्दकुन्द तो वही
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