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भगवत्ता फैली सब ओर
अपनी ज्योति बांटने लगेंगे तो वह कम नहीं होगी, अपितु और बढ़ती चली जाएगी। प्रभावना ठीक ऐसी ही है, जितनी दोगे, बढ़ेगी और एक ज्योतिर्मय संघ का निर्माण होने लगेगा। अन्धकार से अन्धकार बढ़ता है और प्रेम से प्रेम, रोशनी से भी रोशनी वैसे ही बढ़ती है।
'तमसो मा ज्योतिर्गमय', हे प्रभु ! हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर, विष से अमृत की ओर, मृत्यु से जीवन की
ओर ले चल। दूसरे शब्दों में, हे प्रभु ! हम ऐसे कर्म करें जिससे हमारा जीवन अन्धकार से प्रकाश की ओर जाए। इसलिए प्राचार्य ऐसे दीपक हैं जो हमारे बुझे दीपक रोशन करने में सक्षम हैं।
___ लोग सत्संग में क्यों जाते हैं ? ताकि वहाँ जल रहे दीपक के स्पर्श से वे अपने बुझे हुए दीपक जला सकें। सत्संग से ही हमें ज्योति को पहचान होती है। सम्भव है, आप गुरु के पास जाएं तो वहाँ आपको उनका वक्तव्य सुनने को न मिले, मौन आपका स्वागत करे। उनका मौन, कभी मौन नहीं होता वहाँ प्रभावना हो रही होगी। मौन से बड़ी कोई और प्रभावना हो नहीं सकती।
एक आदमी दिन भर लम्बे-चौड़े भाषण देता रहे और सुनने वालों पर उसका कोई असर ही न हो तो उसका भाषण निरर्थक होगा। इसके विपरीत एक साधु मौन बैठा रह कर
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