Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 29
________________ २४ भगवत्ता फैली सब ओर बाहर ढूंढ़ रहा है । आपकी खोई हुई सूई मैं आपको पकड़ा देता हूं, मगर आज के बाद ध्यान रखना कि यह तभी साथ रहेगी जब उसे ज्ञान के सूत्र में पिरोये रखोगे । एक बहुत बड़े संत हुए हैं, रज्जब । जब वे हिन्दुस्तान आए तो गुरु की तलाश शुरू की । उन्हें संत दादू मिले । रज्जब ने तपस्या शुरू कर दी । दादू की सेवा करने लगे । विधि का विधान ऐसा हुआ कि रज्जब एक लड़की के प्रेम में पड़ गया । तपस्या भूल गया । उसने चुपके-चुपके उस लड़की से निकाह करने का निश्चय कर लिया । जब वह सेहरा बांधकर, घोड़ी पर चढ़कर निकाह के लिए जा रहा था तो रास्ते में दादू नजर आए । दादू ने रज्जब और रज्जब ने दादू की प्रांखों में झांका । दादू ने कहा ――― 'रज्जब, तें गज्जब किया, सिर पर बांधा मौर । आया था हरि भजन को, करै नरक का ठौर ।।' रज्जब के हृदय में प्रकाश फूट पड़ा । अरे, मैं तो ज्ञान प्राप्त करने, तप करने आया था और कहां सांसारिकता से जुड़ने चला था । रज्जब ने उसी समय अपना सेहरा उतार फेंका और घोड़ी से उतर पड़ा। दूल्हे की बारात, संन्यासी का जुलूस बन गई । प्यास तो उसके भीतर थी मगर उसे इसके बारे में पता नहीं था । दादू ने उसकी प्यास को जगा दिया । प्यास, लक्ष्य उसके भीतर था, इसलिए वह जाग गया। ऐसा आदमी संसार में चला भी जाए तो भी वह संसार से अलग रह सकता है । ज्ञान के बीच जिम्रो । ज्ञानियों के बीच बैठो । कोई बच्चा संत के पास जाता है तो वह मात्र ज्ञान का आशीर्वाद मांगता है, ताकि परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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