Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 41
________________ ३६ भगवत्ता फैली सब ओर उसने एक पेड़ पर चढ़ कर वहाँ लगे आम तोड़ने शुरू कर दिए और अपना झोला भरने लगा। इतने में कहीं से माली प्रा गया। माली ने लड़के को नीचे उतारा और उसकी पिटाई शुरू कर दी। माली ने कहा-चोरी करते हो, शर्म नहीं आती?' लड़के ने कहा- 'भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा। मैं तो बाग से होकर गुजर रहा था। देखा कुछ प्राम नीचे गिरे थे। मैं इन्हें पेड़ पर वापस चिपकाने के लिए चढ़ गया और आप हैं, जो मुझ पर झूठा इल्जाम लगा रहे हैं !' हम अपनी आत्मा से पूछे, कहीं हम भी तो ऐसा नहीं कर रहे हैं ? आम भी तोड़ रहे हैं, चोरी भी कर रहे हैं और ऊपर से सीनाजोरी भी दिखा रहे हैं। ___ अपनी कषायों, अपने झूठ को, प्रात्म-प्रवंचना को कब तक दबानोगे। ये तो एक दिन और तेजी से उभर कर आएंगे। अंगारा राख के नीचे दबा हुआ है, जैसे ही तेज हवा आएगी और राख उड़ जाएगी तो अंगारा पुन: भभक उठेगा। वह नई आग को जन्म देने में सक्षम होगा। आग तो जलेगी। आपने देखा होगा, वर्षों तक सुप्त रहने के बाद ज्वालामुखी फट पड़ते हैं। माया, वासना, अहंकार-ये सभी उष्णता है और हम इन्हें अपने भीतर दबाते चले जा रहे हैं। याद रखो, ये एक दिन फूट पड़ेंगे और तब इनमें सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा। आदमी दिन में तो भटक ही रहा है, रात्रि में भी उसे आराम नहीं है। दिन में खुली आँखें उसे भटकाती हैं तो रात्रि में बन्द आँखें सपने दिखलाती हैं। दिन में भी सपने, रात में भी सपने। दिन के सपने चेतन मन के हैं। रात्रि के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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