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साक्षीभाव है अाँख तीसरी
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'माटी' होना पड़ेगा। हर अमृत-पुरुष पुण्य का, प्रकाश का, पुंज होता है।
बुद्ध होने का अर्थ है, 'बोधमय तटस्थता'। साक्षीभाव के मार्ग से बुद्धत्व के शिखर हासिल किये जा सकते हैं। साक्षीभाव मनुष्य की तीसरी आँख' है। प्रतिक्रियाओं से वही बच पाता है जो तटस्थ है। इसलिए मन की हस्ती बुझायो और निर्वाण का दीप जलायो। दीप जले-निर्धू म । चुनाववासना के धुए से रहित ।
अदम के तारीक रस्ते में कोई मुसाफिर न राह भूले। मैं शम-ए-हस्ती बुझा के अपनी चिरागे तुरबत जला रहा हूँ।
राजर्षि भर्तृहरि के जीवन की घटना है, जब वे एक पेड़ के नीचे बैठे साधनारत थे। उन्होंने देखा कि उनसे कुछ दूर कोई अद्भुत-अनूठा हीरा पड़ा है। उनके मन में एक विकल्प जरूर आया कि ऐसा हीरा तो उनके राज भण्डार में भी नहीं था, तो क्या इसे उठा लेना चाहिए। तभी उन्होंने देखा कि पूर्व दिशा से एक सुभट चला आ रहा है। पश्चिम दिशा से भी एक सुभट चला आ रहा है। दोनों सुभट हीरे के पास आकर ठिठक गये। दोनों ही हीरे पर अपना-अपना अधिकार जतलाने लगे। दोनों एक दूसरे से कहने लगे कि हीरा पहले मैंने देखा है। बात इतनी बढ़ गयी कि दोनों में तलवारें चल पड़ी।
भर्तृहरि ने पाया, हीरा वहीं का वहीं है उसके कारण दो लाशें जरूर बिछ गयी हैं। उनका निष्कर्ष था कि बचता । वही है जो तटस्थ है, जो हस्तक्षेप नहीं करता।
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