Book Title: Bhagwatta Faili Sab Aur
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 83
________________ भगवत्ता फैली सब ओर खिलाफ जाना भी उचित नहीं है । मार्ग तो 'तटस्थता' है । तटस्थ होकर देखो, उसे पहचानो । ७८ मन से मुक्त होने के लिए हम इसकी स्थिति को समझें । फ्रॉयड ने मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं पर लम्बा-चौड़ा विज्ञान उपस्थित किया है। वास्तव में मन की भी तीन पर्तें हैं— अचेतन, अवचेतन और चेतन । अचेतन मन, गहरी नींव है। यही तो मनुष्य के जीवन का भाग्य निर्धारित करता है । आक्रामकता की सहज वृत्ति, अचेतन मन के कारण ही निष्पन्न होती है । हमारे समस्त संवेग और अनुभवों का मर्म, यही अचेतन मन है । अवचेतन मन चेतन और अचेतन दोनों के बीच का विशेष प्रदेश है । यह सीमावर्ती प्रदेश है । अवचेतन क्षेत्र में ही तो चेतन वासनायें घुस आती हैं और नतीजतन सामाजिक जीवन में अवरोधक काट-छाँट का सामना करना पड़ता है । चेतना, जगत के साथ सम्पर्क बिन्दु पर मन की सतही अभिव्यक्ति है । मन, शरीर की सूक्ष्म संहिता है । श्रात्मा शरीर के हर स्वरूप के पार की स्थिति है । मन से मुक्त होने के लिये या तो मन और विचार को बदल डालो या फिर उन्हें भूल जाओ । मानसिक चंचलताओं को लंगड़ी मारने के लिये मंत्रों का उच्चार करो । गहन उच्चार से मंत्र की लय और छन्द में बद्ध होकर विचार सो जाते हैं। जब विचारों से निःस्तब्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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